गाळा गुलबंदा, गुलबंद को नगीना

गाळा गुलबंदा, गुलबंद को नगीना

 

गाळा गुलबंदा, गुलबंद को नगीना, तेथैं मेरी सासू ब्वारी की अगीना। यह पहाड़ का शानदार लोकगीत है। पहाड़ की परंपरओं के साथ ही पहाड़ की भावनाओें को उजागर करती यह पंक्तियां आज भी सर्वश्रेष्ठ हैं। बात गुलबंद की हो रही है। उत्तराखंड में गले पर पहने जाने वाले आभूषण में गुलबंद या गुलोबन्द का विशेष महत्व है। यह एक आकर्षक गहना है। यह सोने की डिजाइनदार टिकियों को पतले गद्देदार पतले कपड़े पर सिलकर तैयार किया जाता है। गुलोबन्द गढ़वाली, कुमाउँनी, भोटिया और जौनसार की महिलाओं का प्रमुख आभूषण रहा है। कुमाऊँ में इसे रामनवमी भी कहा जाता है। गुलबंद को पट्टे पर सिला जाता है जिसे यह शरीर को स्पर्श नही करता। साभार

 Pahad Samvad

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