तीन राज्यों में मिली प्रचंड जीत के बाद चला मैराथन मंथन और मान-मन्नौवल का दौर निर्णायक मुकाम पर आखिरकार पहुंचा। एक के बाद एक बीजेपी नेतृत्व द्वारा छत्तीसगढ़ में पहले आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग से आने वाले डॉ मोहन यादव और अब राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री के रूप में भजन लाल शर्मा का नाम तय कर दिया गया है।
जाहिर है छत्तीसगढ़ में ‘चावल बाबा’ के तौर पर मशहूर रहे तीन बार के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और मध्यप्रदेश में ‘मामा’ शिवराज सिंह चौहान तथा अब राजस्थान में दो बार की मुख्यमंत्री महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया को दरकिनार करना बीजेपी नेतृत्व के लिए आसान नहीं रहा होगा! लेकिन मानो सियासी पिच पर आसान गेंदबाजी मोदी-शाह को खेलना पसंद न खिलाना ही। फिर किसी सूबे में कद्दावर चेहरों को किनारे कर नए नाम पर दांव लगाने के लिए मोदी-शाह के पास पुष्कर सिंह धामी जैसे कामयाब उदाहरण जो ठहरे।
त्रिवेंद्र सिंह रावत को निष्कंटक चार साल देकर जब मोदी-शाह को यकीन हो गया कि सख्त मिजाज टीएसआर के सहारे 2022 की सियासी बिसात पर पहाड़ फतह आसान न होगा, तब ‘सॉफ्ट स्पोकन’ टीएसआर -2 यानी तीरथ सिंह रावत को आजमाया गया। लेकिन ‘फटी जींस’ के बहाने निकले एक के बाद एक बोल देशभर में न केवल बीजेपी बल्कि उत्तराखंड की नकारात्मक छवि गढ़ने लगे तो मोदी-शाह को मजबूरन तीरथ से पिंड छुड़ाना पड़ा।
उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव सिर पर आ चुका था और महज चार महीने में ही तीसरा सीएम देने की नौबत ने बीजेपी को राजनीतिक नुकसान के मुहाने तक धकेल दिया था। लेकिन मोदी-शाह ने इन्हीं जोखिम भरे हालात में पूरी सियासी स्क्रिप्ट बदल डाली और निशंक, महाराज, बलूनी, धनदा से लेकर तमाम धुरंधरों को दरकिनार करते हुए युवा चेहरे के तौर पर पुष्कर सिंह धामी पर दांव लगा दिया। दो बार विधायक चुने जाने के बावजूद अब तक मंत्री पद से महरूम रहे पुष्कर को सीधे मुख्यमंत्री बनाने के अपने कई जोखिम थे लेकिन धामी ने न केवल जमे जमाए सियासी प्रतिद्वंदियों को मात दी बल्कि जल्दी ही अपने राजनीतिक कौशल और सहज मिलनसार व्यवहार से पूरी राजनीतिक फिजा अपने पक्ष में कर डाली।
नतीजा यह रहा कि कहां बाइस की सियासी बैटल में कांग्रेस को कद्दावर माना जा रहा था और कहां धामी की अगुआई में ‘बारी बारी सत्ता में भागीदारी’ का रिवाज उत्तराखंड में दो दशक बाद बदलता दिखा। नि:संदेह इस दौर की बीजेपी में मूड, माहौल और मैजिक मोदी नाम से ही बनता है और उत्तराखंड में तो फिर प्रधानमंत्री की पॉपुलैरिटी 2014 से बरकरार है। बावजूद इसके सहज और सुलझे हुए सियासी अंदाज के चलते पुष्कर सिंह धामी मोदी शाह के लिए त्रिवेंद्र-तीरथ की तर्ज पर लायबिलिटी नहीं बने बल्कि एसेट बन गए। उसी का नतीजा रहा कि मोदी-शाह ने खटीमा की हार के बावजूद पार्टी की जीत का इनाम दोबारा ताज देकर धामी को दिया।
हालांकि दूसरे कार्यकाल में भी पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री के तौर पर अपने खास अंदाज से लोगों तक पहुंच बनाने और बढ़ाने की हर संभव कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हैं। फिर चाहे भारी बारिश से बने आपदा के हालात से पार पाना रहा हो या सिलक्यारा सुरंग हादसे के बाद संवेदनशील और सतर्क नेतृत्व देना रहा हो या फिर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित करके साढ़े तीन लाख करोड़ से अधिक के नए निवेश के करार कर ‘सशक्त और समृद्ध उत्तराखंड’ की बुनियाद तैयार करना रहा हो, नए चेहरे पर दांव लगाने के मोदी शाह के फैसले को हर मौके पर पुष्कर ने सटीक ठहराने की कोशिश की है। यही वजह है कि आज बीजेपी शासित प्रदेशों के तमाम मुख्यमंत्रियों में पुष्कर सिंह धामी की पहचान ‘नेतृत्व की आंखों के तारे’ चीफ मिनिस्टर के तौर पर होती है।
जाहिर है विष्णुदेव साय से लेकर मोहन यादव और भजनलाल शर्मा के चयन के पीछे राज्यों की अपनी स्थानीय राजनीति के कई कारक रहे होंगे लेकिन एक बड़ी वजह यह भी कि अटल-आडवाणी की छाया से निकल कर आज बीजेपी मोदी-शाह दौर में एक लंबा सफर तय कर बदलाव के नए मुकाम पर पहुंच चुकी है, जहां अब चुनाव दर चुनाव विपरीत हालात में भी जीत हासिल कर रहे मोदी-शाह जमे जमाए मठाधीशों को ढोने की बजाय बेहिचक नए चेहरों पर दांव लगा रहे हैं फिर पुष्कर सिंह धामी जैसे नाम नए दौर की बीजेपी में ‘कामयाबी की मोदी गारंटी’ साबित होकर नेतृत्व के निर्णय को सटीक भी तो साबित कर दे रहे। कम से कम आज तो यही दिख रहा कल की खबर कौन जाने!