पहला जौनसारी- बाउरी कवि सम्मेलन 16 अक्टूबर 2022 को जौनसार बावर भवन विकासनगर में बड़े धूम धाम और हर्षोल्लास से संपन्न हुआ।
पूरा कवि सम्मेलन जौनसारी में था जिसे जौनसारी- बाउरी शब्दवाणी समिति, उत्तराखंड द्वारा आयोजित किया गया था तथा जिसमें 10 जौनसारी बाउरी कवि आमंत्रित थे ( तेरी चिट्ठी पतैरी आई ना फेम कवि खाजान दत्त शर्मा जी, कवि फकीरा सिंह चौहान जी ‘स्नेही’, कवि पूरण सिंह गुरुजी ‘पूरण’ , कवि चतर सिंह ‘गुर’ गुरुजी, कवियित्री विनीता जोशी जी गुरु, कवि सुरेश मनमौजी जी, कवि नारायण सिंह चौहान जी कवि किशन शाह जी , कवियित्री सीमा शर्मा जी एवं मेरे रूप में 10 कवि ) । किंतु कवि फकीरा सिंह चौहान जी ‘स्नेही’ एवं कवि पूरण सिंह जी ‘पूरण’ अपरिहार्य परिस्थियों के कारण भौतिक रूप से इस कवि सम्मेलन को अटेंड नही कर पाए । सबके लिए अति महत्त्वाकांक्षी इस पहले जौनसारी -बाउरी कवि सम्मेलन का औपचारिक शुभारंभ भारत के ‘पद्मश्री’ किसान शिरोमणि प्रेमचंद शर्मा जी नानाजी के द्वारा किया गया जिन्होंने अपनी कालजई रचनाएं पढ़कर सामाजिक कुरीतियां पर प्रहार किया इनकी रचनाओं के प्रमुख विषय जीमदार ( किसान) , परिवार , राजनीति ( नेतागिरी) प्रमुख थे । कवि सम्मेलन की शुरुआत महासू वंदना के साथ हुई जिसे कवियित्री विनीता जोशी ने अपने मधुर स्वरों से प्रस्तुत की तथा साथ ही धूमसू मंच की प्रमुख एवं छेत्र में संगीत का बड़ा नाम शांति वर्मा जी का छोड़ा गीत का विमोचन किया गया । मंच पर आमंत्रित कवि में से पहली रचना कवि चतर सिंह गुर ने ऊगली छूटा टापू, छेउदी खलूटी छेउदा आपू ( बीज से पौधा बनने एवं पौधे का महत्त्व ) रचना पेश कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया और अपनी कुशल एवं मांझी हुई लेखनी का परिचय दिया। अगली रचना कवियित्री सीमा शर्मा ने पढ़ी जिसमें ऐला कै आमै ला लाडकटै ( आज का तरुण वर्ग ) पर रचना पढ़ तरुण वर्ग की मनोस्थिति का वर्णन किया । सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार एवं कवि खजान दत्त शर्मा जी ने बीजों को काकड़ी सुनाकर गांव के बच्चों की शरारतें जैसे बीज वाली काकड़ी की चोरी का वर्णन बड़े विनोदी शब्दों में किया, उनकी प्रेम और व्यंग्यात्मक रचना किस्मती कै खैल ( किस्मत के खेल) सुनाकर हास्य विनोद एवं प्रेम रस के संगम की की एक नई परिभाषा लिखी , उन्ही की एक और रचना पलायन का दर्द महसूस करा गई। कवि सुरेश मनमौजी ने ऐला का जिमदार ( आज का किसान) कविता सुनाकर पहाड़ के छोटे कृषक की कार्यशैली, उसकी मुसीबतों को दर्शकों तक अत्यंत रोमांच के साथ पहुंचाया, उन्ही की रचना प्यारो जौनसार में जौनसार बावर की खूबसूरती, यहां के रीति रिवाज और यहां का समाज का वर्णन कर खूब तालियां बटोरीं । कवियित्री विनीता जोशी की कविताएं भक्ति रस से पूर्ण थी जिसे दर्शकों ने भक्ति भाव से अपनाया। नवोदित कवि किशन शाह ने दशवीं पास ( दसवीं पास) रचना सुनाकर सबको ठहाके लगाने को मजबूर किया उनकी अन्य रचना गांव मेरा मुखै याद आंवदो लागो( मेरा गांव मुझे याद आने लगा ) । कवि नारायण सिंह चौहान ने इस्कूल कै दूस ( स्कूल के दिन) कविता सुनाकर सबको फैशबैक में लेकर जाने एवं स्कूल के दिनों का अनुभव लेने का जबरदस्त परीक्षण किया जो बखूबी सफल हुआ और खूब वाहवाही बटोरी।
मैंने भी ‘एक सलाम’ व्यंग्यात्मक रचना पढ़कर सबको खूब हंसने की कोशिश की , मेरी अन्य रचनाएं जजरेड ( कुव्यवस्था पर कटाक्ष), ओ नैता ( नेताजी लपेटे में) और ‘कुकड़ा और जीमदार’ ( मुर्गे और कृषक की बातचीत) रचनाएं पढ़कर अपनी छोटी सी कलम का एक परिचय देने की कोशिश की । कवि सम्मेलन की शानमें ढोल दमाऊ और रणसिंघे ने चार चांद लगाए। कवि सम्मेलन में आए कवि अपनी पारंपरिक भेषभूषा में थे जिसमें पुरुष जौनसारी चौड़ा, पजामा, झग्गा( कुर्ता) और जौनसारी डिगुवा ( टोपी) आदि और महिलाएं घाघरा, झग्गा ( कुर्ती) , धांटू ( सर ढकने का वस्त्र) और पारंपरिक आभूषण नाथ, हार आदि पहने हुए थी।
कवि सम्मेलन का संचालन पूरी तरह से जौनसारी बोली भाषा में नारायण सिंह और मेरे द्वारा किया गया । कवि सम्मेलन की शोभा बढ़ाने के लिए जौनसारी रंगकर्मी नंदलाल भारती जी, जौनसारी साहित्यकार और लोक पंचायत के संथापक श्री चांद शर्मा जी, सुप्रसिद्ध गीतकार और ज्येष्ठ प्रमुख कालसी भीम सिंह चौहान जी, वरिष्ठ पत्रकार भारत चौहान जी , डॉक्टर पूजा गौड़ जी, अखिल भारतीय लोक साहित्य मंच के पदाधिकारी नरेश मेहता जी, डॉक्टर अमर सिंह राय साब, अशोक आश्रम चिलियो के अध्यक्ष और पूर्व IFS प्रताप सिंह पंवार जी, वरिष्ठ बैंकर ध्यान सिंह राणा जी, गीतकार धर्मेंद्र परमार, श्याम सिंह चौहान, अरविंद राणा, एडवोकेट विपिन , इंदर सिंह नेगी जी और प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया के बंधुओं के साथ करीबन पौने दो सौ लोग मौजूद थे , और सबसे बड़ी मौजूदगी मेरी माँ की थी जो सामने बैठकर ताली बजाकर अपनी जादुई मुस्कान से हम सभी कवियों की हौसला अफजाई कर रही थी । कवि सम्मेलन लगभग 6 बजे सांय में समाप्त हुआ । जौनसारी बाउरी कवि सम्मेलन का एकमात्र लक्ष्य अपनी बोली भाषा को जिंदा रखना है । जिसके लिए सभी लोगों ने पुरजोर एक स्वरात्मक नारा दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी बोली- भाषा , अपनी संकृति का गुणात्मक विकास करना है। दुनिया में बोली भाषा की विविधता खतरे में है, इस बात को सब लोग अच्छे से समझ लें , हमारी पहचान हमारी बोली भाषा से है , आप दुनिया की जायदा से ज्यादा भाषाएं सीखो पर अपनी बोली भाषा को मत भूलो, उसे फैलाओ, उसके विकास में सहायक बनो, क्योंकि जो समाज अपनी जड़ भूल गया, वह समाज मिट गया है, इतिहास इसका गवाह है । हमें गर्व है भारतीय होने पर , अपने जौनसारी बाउरी होने पर ।
क्योंकि राष्ट्र कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा है –
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के , मिटत ना हियै को शूल ।
अरविन्द शर्मा ‘मटियानी’