वर्ष 2013 में केदारनाथ धाम में आई जल प्रलय आज भी जेहन में है। उस दिन पानी का ऐसा सैलाब आया कि सब अपने साथ ले गया। हजारों जिंदगियां तबाह हो गयी तो लाखों करोड़ों की संपत्ति बर्बाद। चारों तरफ बस तबाही का मंजर था। आपदा कितनी भयावह थी इसका अन्दाजा इसी से लग जाता है कि कई सैंकड़ों किलोमीटर दूर श्रीनगर शहर को भी भारी नुकसान हुआ। श्रीनगर से लेकर रुद्रप्रयाग और रुद्रप्रयाग से लेकर गौरी कुंड तक तबाही का वो मंजर मैंने अपनी आंखों से देखा है। रुद्रप्रयाग से तिलवाड़ा तक जगह जगह सड़क बह चुकी थी। जिस किसी को आगे बढ़ना था उसे पैदल ही मिलों की दूरी तय करनी थी। मैंने और उस समय मेरे साथ दैनिक जागरण में फोटोग्राफर साथी राजेश बड़थ्वाल ने आपदा के एक हफ्ते बाद इसी तरह पूरे इलाके में रिपोर्टिंग की। तबाही का वो मंजर भयावह था। नदी अपने साथ तमाम परिवारों की खुशियां भी बहा ले गयी। घर के घर वीरान थे। किसी का पूरा घर बह गया तो कोई अपने टूटे मकान, दुकानों को देखकर बेहाल। किसी को लोन की किश्तों की चिंता तो किसी को रोजगार का डर। पर धीरे धीरे पूरी घाटी में हालात सामान्य होने लगे। वही टूटे हुए परिवार फिर मजबूती के साथ खड़े होने लगे। रोजगार धंधे अभी चलने ही लगे थी पूरी दुनिया मे आयी कोरोना नामी आपदा ने पहाड़ को भी नहीं बख्शा। इस समय जबकि चारधाम यात्रा अपने चरम पर होती तो आज इन यात्रा मार्गों पर एक अजीब सन्नाटा पसरा है। टूर ट्रेवल से लेकर होटल, दुकान सब कामकाज चौपट है। बीते सात सालों में पहाड़ पर ये एक और बड़ी आपदा आयी है। इससे उबर पाना भी आसान नहीं होगा।