कांग्रेस संगठन में फेरबदल की कवायद शुरू कर चुकी है। कोशिश है कि उत्तराखंड में जर्जर होती पार्टी को फिर से बूस्ट किया जाए। पार्टी में कैसे जान आएगी, कौन इसमें जान फूंक सकता है, यह तय करने के लिए पार्टी हाईकमान की दिल्ली में दिमागी कसरत चल रही है। बताया जा रहा है कि बैठक में नेता प्रतिपक्ष कौन बनेगा यह तय किया जाना है और पार्टी संगठन की बागडोर किसके हाथों में होगी यह भी। साथ ही चुनावी रण के सेनापति पर भी संभवत इसी मंथन में बख्तरबंद कस दिए जाएंगे।
कुल जमा देखा जाए तो टारगेट 2022 ही है, और जो स्वाभाविक भी है। लेकिन सुनने में आ रहा है कि यहां भी वर्चस्व का द्वंद अवरोध बन कर सामने आ रहा है। लेकिन उम्मीद है इस मंथन से जल्द ही कुछ निकलकर सामने आएगा। फिर वो सौदा राजनैतिक नफे का हो या फिर………
बताया जा रहा है कि दिल्ली बैठक में खास तौर पर तीन मसलों को लेकर रस्साकस्सी चल रही है। पहला 2022 विधान चुनाव की कमान किसे सौंपी जाए, जो नतीजों को पक्ष में ला सके। दूसरा नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाए जो सत्ता को घेर सके और तीसरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी बागडोर किसे सौंपी जाए जो छिदराए कार्यकर्ताओं को एक कर सके।
बड़े नेता चुनावी मजबूरी बताकर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए अपने ही भीतर प्रतिद्वंदियों से उपरोक्त तीनों मुकाबलों को जीतना चाहते हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर इंदिरा हृदयेश के निधन से कांग्रेस के राजनीतिक समीकरण और अधिक उलझ गए हैं। स्व इंदिरा के बाद विधानसभा में कांग्रेस का जातीय आंकड़ा ब्राह्मण विहीन है। राजकुमार और ममता राकेश दोनों एससी, काजी निजामुद्दीन और फुरकान मुस्लिम, प्रीतम सिंह एसटी ठाकुर, गोविंद सिंह कुंजवाल, हरीश धामी, करन माहरा, मनोज रावत व आदेश चैहान पांचों ठाकुर हैं। ऐसे में संतुलन बिठाना संभव नहीं है।
कुछ जानकार मानते हैं कि पार्टी हाइकमान हरीश रावत को आगामी विधानसभा चुनाव की कमान सौपेगी। और प्रीतम सिंह नेता प्रतिपक्ष बनाए जा सकते हैं। और पीसीसी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ब्राह्मण नेता को सौपी जायेगी। नेता प्रतिपक्ष के लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व गोविंद सिंह कुंजवाल का भी नाम चल रहा है। और प्रदेश अध्यक्ष के लिए पूर्व विधायक व बीकेटीसी के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल, पूर्व पीसीसी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय व प्रकाश जोशी का नाम चर्चाओं में है। उम्मीद है इस मंथन से जल्द ही परिणाम निकलेंगे।