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अद्भुत है पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर का रहस्य, दर्शन से मिलता है चार धाम यात्रा जितना पुण्य

अद्भुत है पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर का रहस्य, दर्शन से मिलता है चार धाम यात्रा जितना पुण्य।

पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है जो अपने पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। पर्यटकों के लिए यह गुफा घूमने के लिए एक मुख्य स्थल हुआ करता है।

मुख्य बातेंस्कंद पुराण में की गई है इस गुफा के महिमा की व्याख्याबहुत ही संकीर्ण रास्ते से होकर इस गुफा में रखा जाता है कदमगुफा के अंदर स्थित है भगवान शिव जी का एक प्राचीन शिवलिंग।

भारत की पवित्र धरती पर ऐसे कई स्थान हैं जो अपने पौराणिक इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता को संजोए हुए हैं और इस वजह से इनकी पहचान दुनिया भर में है। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर। यह मंदिर रहस्य और सुंदरता का बेजोड़ मेल के रुप में जाना जाता है। समुद्र तल से 90 फीट नीचे इस मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए बहुत ही संकीर्ण रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर की महिमा का वर्णन है। यहां जानिए पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें।

राजा ऋतुपर्णा ने की थी इस मंदिर की खोज

कहा जाता है कि त्रेता युग में राजा ऋतुपर्णा ने इस गुफा की खोज की थी जिसके बाद उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। कहा जाता है कि इंसान द्वारा इस मंदिर की खोज करने वाले राजा ऋतुपर्णा पहले व्यक्ति थे।

अधिशेष राजा ऋतुपर्णा को इस गुफा के अंदर ले गए जहां उन्हें सभी देवी-देवता और भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि उसके बाद इस गुफा की चर्चा नहीं हुई लेकिन पांडवों ने द्वापर युग में इस गुफा को वापस ढूंढ लिया था और यहां रहकर भगवान शिव की पूजा करते थे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक कलियुग में इस मंदिर की खोज आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में किया था।

क्या है इस गुफा मंदिर के अंदर?

इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले मेजर समीर कटवाल के मेमोरियल से होकर गुजरना पड़ता है। कुछ दूर चलने के बाद एक ग्रिल गेट मिलता है जहां से पाताल भुवनेश्वर मंदिर की शुरुआत होती है। यह गुफा 90 फीट नीचे है जो बहुत ही पतले रास्ते से होकर इस मंदिर के अंदर घुसा जाता है। थोड़ा आगे चलने पर इस गुफा के चट्टान एक ऐसी कलाकृति बनाते हैं जो दिखने में 100 पैरों वाला ऐरावत हाथी लगता है। फिर से चट्टानों की कलाकृति देखने को मिलती है जो नागों के राजा अधिशेष को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि अधिशेष ने अपने सिर के ऊपर पूरी दुनिया को संभाल कर रखा है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में चार द्वार हैं जो रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के नाम से जाने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि रावण की मृत्यु के बाद पापद्वार बंद हो गया था। इसके साथ कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था। यहां से आगे चलने पर चमकीले पत्थर भगवान शिव जी के जटाओं को दर्शाते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश के कटे हुए सिर को स्थापित किया गया था। इतना ही नहीं इस मंदिर में प्रकृति द्वारा निर्मित और भी कलाकृति मौजूद हैं।

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