अध्यापन के साथ – साथ संस्कृति को भी बचा रहे हैं भटाड (जौनसार) के सुरेश मनमौजी

एक शिक्षक के साथ साथ अपनी संस्कृति बोली भाषा को भी बचा रहे भटाड, काण्डोई (जौनसार) के सुरेश मनमौजी।

बचपन से ही लिखने में रुचि ।

कक्षा 6 में लिखी पहली कविता।

1995 में निकली पहली कैसेट।

उत्तरांचल की कलम नामक अखबार में पहली दो कविताएं प्रकाशित हुई।

सुरेश मनमौजी कहते हैं  साथियों जिस बोली भाषा को हम बचपन से बोलते सुनते आ रहे हैं उस पर काम करने का अवसर मुझे आज से करीब 25 साल पहले मिला था
जब कुछ मेरे विद्वान शिक्षकों ने मुझे इस दिशा में कार्य करने को कहा गया और वह कार्य मात्र इतना था की करीबन 500 जौनसारी शब्दों का हिंदी अर्थ बताना था
बड़ा अटपटा और बड़ी हिजक झिझक लगती थी मन में उदगार बहुत थे
लेकिन समस्या थी कि इसको एक माला में कैसा पिरोया जाए
लेखन में बचपन से ही रुचि थी और मैंने कक्षा 6 से ही लिखना शुरू कर दिया था अर्थात या 1990 की बात है
कुछ ना कुछ अपनी भाषा के प्रति करने के लिए मेरे मन में विचार आते जाते रहते थे कुछ शब्दों का अर्थ मैं अपने पिताजी और माताजी और बुजुर्गों से पूछता रहता था
जो भी बुजुर्ग विद्वान संस्कृति प्रेमी कला प्रेमी मुझे आज तक मिले हैं मुझे उनसे सहयोग ही मिला है।
1995 की बात है जब टैब रिकॉर्ड में मैंने और मेरे परम मित्र उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार मान्यता प्राप्त पत्रकार श्रीमान प्रेम पंचोली जी और श्रीमती लीला गौतम जी द्वारा
एक ऑडियो रिकॉर्ड की गई जिसका नाम था झीलको तारे
लगभग 100 कैसेट के आसपास नौगांव बाजार तथा पुरोला बड़कोट मैं यह कैसेट विकी जिससे हमें एक नाम मिला गायक का अर्थात गायन के और गीतों के विषय में बहुत लंबी चौड़ी कहानी है उसे मैं अगले अंक में विस्तार से बताऊंगा
आज इस अंक में सिर्फ कविताओं के बारे में चर्चा और परिचर्चा कर रहा हूं आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं उस समय फेसबुक व्हाट्सएप जैसे संसाधन नहीं थे
लेकिन रेडियो हम लगातार सुनते रहते थे सन 2002 में आकाशवाणी के नजीबाबाद केंद्र से कुछ सूचना मैंने सुनी जिसमें था कि अगर आप युवा है तो आप भी अपनी कविताओं को हम तक पहुंचा सकते हैं मैंने अपनी कविताओं को आकाशवाणी नजीबाबाद केंद्र में पोस्ट के माध्यम से डाकखाने के माध्यम से भेजा और मुझे नजीबाबाद केंद्र के युव वाणी कार्यक्रम में 15 मिनट का समय मिला जिसमें मैंने दो कविताओं को प्रस्तुत किया
यह कविताएं हिंदी भाषा में थी और इसका प्रसारण भी हुआ
उसके बाद मैंने कई अखबारों और मैगजीनो। वालों से संपर्क किया उत्तराखंड की कलम नामक अखबार में
सर्वप्रथम मेरी दो कविताएं प्रकाशित हुई
उसके बाद देहरादून टाइम्स उत्तराखंड शक्ति युगवाणी गढ़ बैराठ
जैसे प्रतिष्ठित संगठनों में मेरी कई कविताएं प्रकाशित हुई वन दर्पण मैं भी दो कविताएं प्रकाशित हुई और सन 2010
संस्कृतिक विभाग उत्तराखंड शासन द्वारा एक विज्ञप्ति अपनी बोली भाषा में किताब प्रकाशन हेतु सहायता के लिए विज्ञप्ति को मैंने पढ़ा और मैंने अपनी सारी कविताएं
अपने संस्कृति से संबंधित पहनावे खान-पान वेशभूषा रहन-सहन जो उस कम समय में मैं प्रकाश डाल सकता था उसका 112 पेज का पहला जौनसारी काव्य संग्रह
अपना रिवाज सांस्कृतिक विभाग उत्तराखंड से सहायता प्राप्त 2011 में प्रकाशित हुआ जो कि विभिन्न लाइब्रेरीयो में भी पढ़ने के लिए उपलब्ध है
उसके बाद लेखन कार्य कुछ थम सा गया
पुने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान देहरादून से प्रकाशित जौनसारी शब्दकोश में काम करने का अवसर मिला
फेसबुक व्हाट्सएप के माध्यम से हम अपनी बोली भाषा को पोस्ट के माध्यम से तथा तमाम प्रतिष्ठित संगठनों जैसे
धाद संस्था डिजिटल सारथी आदि पर कविता पाठ करने का अवसर मिला और
उसके बाद डाकपत्थर बैराज में टूर्नामेंट के और संगीत कार्यक्रम में कविता पाठ को प्रस्तुत करने का अवसर मिला
वर्ष 2022 में जौनसार बावर भवन विकासनगर में पहला जौनसारी कवि सम्मेलन प्रस्तुत हुआ जिसमें हम कवि गणों को कृषि और बागवानी के क्षेत्र में पदम श्री प्रेमचंद शर्मा जी द्वारा सम्मान मिला और यह वह पल था जिसका हम कई वर्षों से इंतजार भी कर रहे थे अब अपनी बोली भाषा में लेखक साथियों की बहुत लंबी फौज है और मैं खुद भी एक कविता संग्रह और एक उपन्यास एक अन्य किताब अपनी भाषा में प्रकाशनार्थ है बहुत जल्द आपको कविता संग्रह पढ़ने को मिलेगा
मुझे बहुत खुशी है कि हम अपनी मातृभाषा अपनी बोली को भाषा को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं
आपका सुरेश मनमौजी
7500407803

 Pahad Samvad

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