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जन-जन की सरकार का दमदार प्रहार — धामी मॉडल ने शासन को जनता के द्वार पहुँचाया

जन-जन की सरकार का दमदार प्रहार — धामी मॉडल ने शासन को जनता के द्वार पहुँचाया

 अधिकारी अब फाइलों में नहीं, बल्कि मैदान में दिखाई देने चाहिए-सीएम धामी

 आज 13 जनपदों में 135 शिविरों का आयोजन, 74,087 से अधिक नागरिकों के आवेदन मौके पर ही प्राप्त, 8,408 आवेदनों का तत्काल निस्तारण

 धामी मॉडल, सुशासन की पहचान न सुनवाई का इंतज़ार, न सिफारिश की जरूरत

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में संचालित “जन-जन की सरकार, जन-जन के द्वार” कार्यक्रम प्रदेश में सुशासन का सशक्त उदाहरण बन चुका है। सरकार अब केवल सचिवालय तक सीमित नहीं, बल्कि हर गांव, हर द्वार और हर जरूरतमंद तक स्वयं पहुँच रही है।

आज 27 दिसंबर 2025 तक प्रदेश के 13 जनपदों में 135 शिविरों का आयोजन कर 74,087 से अधिक नागरिकों के आवेदन मौके पर ही प्राप्त किए गए, जिनमें से 8,408 आवेदनों का तत्काल निस्तारण किया गया। इन शिविरों के माध्यम से 13,934 प्रमाण पत्र जारी किए गए तथा 47,878 नागरिकों को विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ प्रदान किया गया।

 

 

यह अभियान केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जनता के प्रति सरकार की संवेदनशीलता, जवाबदेही और प्रतिबद्धता का प्रमाण है। मुख्यमंत्री श्री धामी के निर्देश पर अधिकारी अब जनता को कार्यालयों के चक्कर नहीं लगवा रहे, बल्कि समस्या तक स्वयं पहुँच रहे हैं।

 

 

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि *“मेरे लिए शासन का अर्थ केवल आदेश देना नहीं, बल्कि जनता की समस्या को समझकर उसका त्वरित समाधान करना है।* ‘जन-जन की सरकार, जन-जन के द्वार’ अभियान के माध्यम से हमने यह सुनिश्चित किया है कि प्रदेश का कोई भी नागरिक शासन से वंचित न रहे। अधिकारी अब फाइलों में नहीं, बल्कि मैदान में दिखाई देने चाहिए।

उत्तराखण्ड में शासन अब सत्ता का नहीं, सेवा का माध्यम है।”

 

 

 

 

मुख्यमंत्री के सख्त निर्देश हैं कि प्रत्येक पात्र नागरिक तक योजनाओं का लाभ अनिवार्य रूप से पहुँचाया जाए | बुजुर्ग, दिव्यांग एवं दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों के लिए घर-घर समाधान सुनिश्चित हो| शिविरों में प्राप्त हर आवेदन का समयबद्ध और पारदर्शी निस्तारण किया जाए | लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए |

धामी मॉडल आज उत्तराखण्ड में सुशासन की पहचान बन चुका है, जहाँ सरकार जनता के दरवाजे पर है —

न सुनवाई का इंतज़ार, न सिफारिश की जरूरत है |

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